क्या खो कर हम क्या पाएंगे

क्या खो कर हम क्या पाएंगे

चलो फिर से कुछ यादें बटोरली,
कुछ पुरानी बातें  को  दोहरा लिया ।
कुछ प्यार था बाक़ी, उसको भी  बाट लिया,
चलो चन्द नई यादें और बना ली ।
कुछ दर्द था तो चुपके से रो लिया,
मगर कुछ बातें हमेशा उनकाही और अधूरी रहेंगी ।
एक टीस है सीने मैं वह दुखती रहेगी,
एक मशाल लौह बन कर जलती रहेगी ,
वक़्त के साथ यह सुलगती  रहेगी ।
सुने रातो में खुद से बातें चलती रहेगी,
जो भूल गए बातें रहो में ,वो न लौट कर वापस आएंगे,
जो छूट गए साथी, उनको कहा अब पाएंगे ।
सफर में यूही हम आधे अधूरे , बेबस बंजारे चलते रहेंगे,
गैरो के अपने और खुद से बेगाने बनते  रहेगे ।
है खुद में एक खुद की तलाश…..
देखो अब आगे…क्या खो कर……हम क्या पाएंगे…….

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